Kisan-Fasal-Utpadan: किसानों के लिए सितम्बर माह के प्रथम पखवाड़े की कार्य योजना तय
HimachalToday.in: प्रसार शिक्षा निदेशालय चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर ने सितम्बर महीने के प्रथम पखवाड़े के लिए कार्य योजना तय कर दी है। सुंदरनगर स्थित कृषी विान केंद्र के प्रभारी ने जारी बयान कहा कि इस दौरान किये जाने वाले कृषि एवं पशुपालन कार्य की किसानों के लिए एडवाईजरी जारी की है जिसे किसान भाई अपनाकर अपने कृषि एवं पशुपालन कार्यों को बेहतर ढंग से कर सकते हैं।
कृषि एवं पशुपालन कार्यों को बेहतर ढंग से कर सकते हैं किसान-फसल उत्पादन
धान में नाइट्रोजन की अन्तिम मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था में, अधिक उपज देने वाली उन्नत प्रजातियों के लिए 30 कि.ग्रा. तथा सुगन्धित प्रजातियों के लिए 15 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें। मक्का की फसल में अधिक वर्षा होने की स्थिति में जल निकास का उचित प्रबंध करें।
सब्जी उत्पादन
प्रदेश के निचले पर्वतीय क्षेत्रों में फूलगोभी की दरम्याना किस्में पालम उपहार, इम्पूवड जापानीज, मेघा की तैयार पौध की रोपाई करें। रोपाई से पूर्व 250 किंवटल गोबर की गली सड़ी खाद के अतिरिक्त 235 किलोग्राम इफको (12ः32ः16) मिश्रण खाद, 54 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश तथा 105 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर खेत में डालें। इन्हीं क्षेत्रों में फूलगोभी की पिछेती किस्म पूसा स्नोवॉल 16, के-1, के.टी.-25, पूसा सुधा तथा संकर किस्म श्वेता, 626, माधुरी, महारानी, लक्की, व्हाईट गोल्ड इत्यादि, बन्दगोभी की किस्म प्राईड आफ इण्डिया, गोल्डन एकड़, पूसा मुक्ता तथा संकर वरूण, वहार इत्यादि, गांठ गोभी की किस्म व्हाईट वियाना, पालम टैण्डरनॉब, परपल वियाना, ब्रॉकली की किस्म पालम समृधि, पालम हरीतिका, पालम कंचन व पालम विचित्रा तथा चाईनीज बन्दगोभी की किस्म पालमपुर ग्रीन की पनीरी दें।
ऐसे लगाए नर्सरी पौध
नर्सरी पौध उगाने के लिए तीन मीटर लंबी, 1 मीटर चौड़ी तथा 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंची क्यारी में 25 से 30 किलोग्राम सड़ी-गली गोबर की खाद, 240 ग्राम इफको (12ः32ः16), 20-25 ग्रा. फफूंदनाशक इण्डोफिल एम 45 तथा 10-15 ग्राम कीटनाशक जैसे थीमेट या फोलीडॉल धूल 5 सें.मी. मिट्टी की उपरी सतह में मिलाने के उपरान्त 5 सें.मी. पंक्तियों की दूरी पर बीज की पतली लाइन में बिजाई करें।
बिजाई के समय खेतों में डालें 15 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हैक्टेयर
इन्ही क्षेत्रों में पालक की किस्म पूसा हरित, पूसा भारती, मेथी की किस्म आई.सी. 74, पालम सौम्या, पूसा कसूरी इत्यादि की बिजाई पंक्तियों में 25-30 सें.मी. की दूरी पर करें। बिजाई के समय 100 क्विटल गोबर की सड़ी-गली खाद के अतिरिक्त 150 किलोग्राम (12ः32ः16) मिश्रण खाद तथा 15 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें।
मध्यवर्ती पहाडी क्षेत्रों के लिए मटर की अगेती किस्म
मध्यवर्ती पहाडी क्षेत्रों में मटर की अगेती किस्म पालम त्रिलोकी, अरकल, वी.एल. 7 तथा मटर अगेता की बिजाई 30 एवं 7.5 से.मी. की दूरी पर करें। बिजाई के समय 200 क्विंटल गोबर की सड़ी-गली खाद के अतिरिका 185 किलोग्राम इफको (12ः32ः16) मिश्रण खाद तथा 50 किलोग्राम म्यूरेट आफै पोटाश प्रति हैक्टेयर खेत में डालें। इन्हीं क्षेत्रों में फूलगोभी की पिछेती किस्म, बन्दगोभी, गाँठ गोभी, मूली, शलगम, गाजर, पालक, मेथी इत्यादि की बिजाई का भी उचित समय चल रहा है।
फसल संरक्षण
घान की फसल में पत्ता लपेटक कीट के नियन्त्रण के लिए कीटग्रस्त पत्तों को काट दें तथा खेत व मेडों से घास आदि निकाल दें। कीट का अधिक प्रकोप होने पर क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
धान में तना छेदक कीट के आक्रमण की स्थिति में सफेद बालियां बनती है। 5 प्रतिशत से अधिक नुकसान होने पर लेम्डा साइलोहेथिन 0.8 मिली लीटर प्रति लीटर पानी के घोल बनाकर छिड़काव करें। धान में हिस्पा कीट के नियन्त्रण के लिए क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी के पोल का छिड़काव करें।
बैंगन में तना एवं फल छेदक सुण्डियों तथा करेला में हड्डा बीटल के नियंत्रण के लिए एवं फसलों में पत्ते खाने वाली विभिन्न प्रकार की सुण्डियों का प्रकोप होने पर साइपरमैधिन 10 ई.सी. 1.5 मि.ली. प्रमि लीटर या इमामेक्टिन बेंजोइट 0.4 मि.ली.ली. का छिड़काव करें।
पशुधन
सितंबर माह में बरसात कम होने तथा पहाडी क्षेत्रों में हल्की ठंड का आगमन होने से कीटों और परजीवियों की सक्रियता में कमी आने लगती है। परंतु मैदानी क्षेत्रों में कई प्रकार के कीटों एवं परजीवियों की सक्रियता वातावरणीय परिस्थिति के कारण बनी रहती है इसलिए पशुधन को काटने वालों कीट की रोकधाम के लिए विशेष ध्यान दें। बरसात के मौसम में पशुओं में तनाव के कारण कई प्रकार के दुष्प्रभाव पड़ते हैं तथा इस स्थिति में कुछ घातक संक्रामक रोग पनप सकते हैं। इन बीमारियों में खुरपका मुंहपका, लम्पी स्कीम रोग, गलघोटू, लंगड़ा बुखार और 3 दिन वाला बुखार प्रमुख हैं। जानवरों में बिमारी के किसी भी लक्षण जैसे भूख न लगना या कम होना तेज बुखार या फिर पेशाब के साथ खून आने की स्थिति में तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह लीजिए।
संक्रामक रोगों से बचाने के लिए पशुओं को रखें सूखी जगह
पशुओं को संक्रामक रोगों से बचाने के लिए पशुओं को सूखी जगह पर रखें और सूखा बिस्तर उपलब्ध कराए। पानी के बर्तनों को नियमित अंतराल पर साफ करें। पशुओं को बदलते मौसम से बचाने के लिए उनके चारे तथा रखरखाव पर विशेष ध्यान दें तथा उन्हें अच्छी तरह से बने गौशालाओं में रखे। इस महीने में भेड़ का ऊन कतरने का कार्य भी करना चाहिए तथा भेड़ बकरियों को चारागाह में भेजने से पहले उनको कीड़े मारने की दवाई दे। परजीवी रोगों की रोकथाम के लिए पशुओं के गोबर की जांच पशु चिकित्सालय में करवा लें और रोगों की निश्चित तौर पर पहचान हो जाने पर पशु चिकित्सक से रोगी पशुओं का उपचार करवाएं। बाहय परजीवियों के नियंत्रण के लिए पशु चिकित्सक की सलाह से कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करें। सितंबर माह में विषाणुओं से होने वाले रोगों जैसे खुरपका व मुंहपका, तथा गलाघोंटू रोग की रोकथाम के लिए पशु चिकित्सक से परामर्श लें। हरे चारे से साइलेज बनाए, हरे चारे के साथ सूखे चारे को मिलाकर पशुओं को खिलाएं। मछली पालक भी पानी की गुणवत्ता की नियमित जांच करें, समुचित विकास के लिए पूरक आहार की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करें।
कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र एटिक 01894-230395 या 1800-180-1551 से लें जानकारी
किसान भाईयों एवं पशु पालकों से अनुरोध है कि अपने क्षेत्रों की भौगोलिक तथा पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अतिविशिष्ट जानकारी हेतु नजदीक के कृषि विज्ञान केन्द्र एवं कृषि एवं पशुपालन अधिकारी से सम्पर्क बनाए रखें अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र एटिक 01894-230395 या 1800-180-1551 से भी सम्पर्क कर सकते हैं।
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